दलखोला /सिटी हलचल न्यूज संवाददाता
दालखोला : "पर्युषण पर्व" जो जैन धर्म का सबसे बड़ा और पवित्र त्योहार है, जिसका अर्थ आत्म-चिंतन और शुद्धिकरण है।यह पर्व भगवान महावीर के मूल सिद्धांतों, अहिंसा और संयम का संदेश देता है ।इस दौरान ईर्ष्या, कलह, अहंकार जैसे विकारों से दूर रहकर तप और त्याग किया जाता है। आचार्यश्री महाश्रमण जी की आज्ञा से व्दिउपाशिका *श्रीमती सुशीला की दुगड़ (फरीदाबाद) और अंकिता जी मालू (दिल्ली)के सान्निध्य में पर्युषण काल (आठ दिनों का) दलखोला तेरापंथ भवन* में आध्यात्मिकता के साथ मनाया गया
इस अष्टान्हिका पर्व को सकल जैन समाज ने जप,तप, ध्यान, संयम-साधना के साथ पूर्ण किया। उपाशिका बहनों ने प्रत्येक दिन अलग-अलग अनुष्ठान जैसे आगम वाचन, भक्तांबर,जप, ध्यान, अभिनव सामायिक, भजन अंताक्षरी, गीतिका ,नाटक आदि करवाकर बच्चे - बड़ों सबके मन में आध्यात्मिक की लो जलाई
तेरापंथ सभा, महिला मंडल , युवक परिषद्, अणुव्रत समिति ,ज्ञानशाला व सकल जैन समाज ने इन आध्यात्मिक अनुष्ठानों में अपनी आहुति अवश्य दी। आध्यात्मिक इस महाकुंभ *पर्यूषण* का समापन क्षमायाचना दिवस के रूप में हुआ। जिसमें सभी ने *खमत खामणा* की जिसका अर्थ है "अपने पापों के लिए क्षमा याचना करनाऔर दूसरों की गलतियों को माफ़ करना "।
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