पूर्णियां से बालमुकुन्द यादव की रिपोर्ट
पूर्णिया : जिले में कालाजार को लेकर जागरूकता, छिड़काव का असर दिखने लगा है। जिस कारण मरीजों की संख्या में धीरे धीरे कमी आ रही है। स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा सहयोगी संस्थाओं जैसे- केयर इंडिया एवं पीसीआई के सहयोग से मरीज़ों की स्क्रीनिंग और समय से बेहतर इलाज के कारण कालाजार के मरीज स्वस्थ्य हो रहे हैं। रूपौली के नाथनगर गांव निवासी राकेश कुमार भास्कर की 26 वर्षीय पत्नी उषा कुमारी जब 12 साल की थी तभी कालाजार बीमारी से ग्रसित हो गई थी। इस दौरान उन्हें लगातार एक महीने तक बुखार आ रहा था। ग़रीबी की दंश झेल रही उषा के परिजनों के पास इलाज़ के लिए उतने पैसे नही थे कि इलाज़ करवा सके। हालांकि परिजनों द्वारा निजी चिकित्सकों के पास बुखार का इलाज कराया जा रहा था लेकिन वह ठीक नहीं हो रहा था। तभी किसी ने सलाह दी कि सरकारी अस्पताल में जाकर चिकित्सीय सलाह लेने के बाद उपचार कराया जाना बेहतर होगा, क्योंकि वहां पर निःसंदेह निःशुल्क जांच एवं उपचार होता है। सरकारी अस्पताल के चिकित्सक से सलाह लेने के बाद उषा की जांच हुई तो उसे कालाजार निकला। उसके बाद लगातार बीमारी का इलाज़ हुआ और नियमित रूप से दवा चलाया गया जिसके परिणाम स्वरूप उषा पूरी तरह से बीमारी से ठीक हो गई। उषा का पैतृक घर मधेपुरा जिले के चौंसा प्रखंड अंतर्गत लौंवा लगाम शंकरपुर हैं जो पूरी तरह से बाढ़ प्रभावित इलाक़ा है। यहां साल में एक बार बाढ़ का आना लाजिमी है जिसमें बालू मक्खियों के पनपने की सम्भावना होती है। उषा का मानना है कि शायद उसी कारण बालू मक्खियों के काटने से वह कालाजार की बीमारी से ग्रसित हो गई थी
कालाजार बीमारी की तरह मेरा शरीर भी पड़ गया था काला: उषा कुमारी
उषा ने बताया कि बचपन में ही पिता की मृत्यु हो चुकी थी। परिवार चलाने के पैसे नहीं थे तो फ़िर मेरा इलाज़ कहां से होता। सरकारी अस्पताल में निःशुल्क उपचार नहीं होता तो शायद आज मैं जिंदा नहीं रहती। क्योंकि कालाजार का इलाज़ निजी क्लिनिक में बहुत महंगा था। जिस कारण मेरी मम्मी को किसी ने सलाह दी कि सरकारी अस्पताल में जाकर इलाज करवाओ क्योंकि वहां पर पूरी तरह से निःशुल्क उपचार होता है। उस समय मुझे उतनी समझ नहीं थी लेकिन आर्थिक रूप से तंगी की हालात को समझ रही थी। कालाजार होने से मेरा शरीर पूरी तरह से काला पड़ गया था। ऊपर से कमजोरी इतनी हो रही थी कि चलने फिरने तक का मन नहीं करता था। कालाजार को बहुत करीब से देखने के बाद भगवान से मन्नत मांगती हूं कि इस तरह की बीमारी किसी दुश्मन को भी नहीं हो
कालाजार से बचाव एवं सुरक्षित रखने के लिए लोगों को उषा करती हैं जागरूक :
उषा ने बताया अभी फिलवक्त मैं जीविका समूह से जुड़ कर एचएनएस (व्यवहार परिवर्तन संचार) के एमआरपी (मास्टर रिसोर्स पर्सन) के रूप में रूपौली के कांप, मोहनपुर, विजय लालगंज, भौंवा परवल, नाथनगर एवं लक्ष्मीपुर गिरधर पंचायत के लगभग दो दर्जन से ज्यादा गांवों में भ्रमण कर हजारों महिलाओं के साथ बैठक कर कालाजार से बचाव को लेकर जागरूक करती हूं। क्योंकि बाढ़ प्रभावित इलाकों में बालू मक्खियों के काटने से कालाजार जैसी बीमारियां उत्पन्न होती हैं। इसके साथ ही गर्भवती एवं धातृ महिलाओं को पोषण के प्रति जागरूक भी करती हूं
डोर टू डोर भ्रमण कर कालाजार के प्रति जागरूक करती हैं उषा: पीसीआई
प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल (पीसीआई) के प्रमंडलीय समन्वयक गौरव किशन ने बताया विगत तीन वर्ष पूर्व उषा से मेरी मुलाक़ात हुई थी। समय-समय पर इनसे किसी न किसी प्रशिक्षण या अन्य कार्यक्रमों में मुलाकात होते रहता था। उसके कालाजार जैसी बीमारी को मात देकर उबरने की कहानी जानने के बाद हमने उसे अन्य लोगों को कालाजार बीमारी से बचाव एवं सुरक्षित रहने के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से प्रशिक्षित किया। उसके बाद उषा के द्वारा लोगों को कालाजार के साथ ही अन्य उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) के विभिन्न तरह की बीमारियों सहित वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल के दौरान भी डोर टू डोर भ्रमण कर कोरोना संक्रमण से बचाव एवं सुरक्षित रहने के लिए क्या क्या उपाय होने चाहिए, उसके बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देने का काम किया गया। विगत वर्ष से कोरोना टीकाकरण कार्य शुरू हुआ है। उषा द्वारा इसमें भी लोगों को जागरूक करते हुए टीकाकृत करवाया गया है। उषा द्वारा लोगों को जागरूक करने के बाद ग्रामीण क्षेत्र के हजारों महिलाओं द्वारा अस्पताल में सुरक्षित प्रसव कराया गया है। अगर किसी को बुखार होने की जानकारी या सूचना मिलती है तो सबसे पहले सरकारी अस्पताल में ले जाकर या भेजवा कर चिकित्सीय परामर्श लेने के बाद उसकी जांच और इलाज करवाना उषा का पहला धर्म बन गया है। ताकि किसी भी तरह की कोई गंभीर बीमारी इनके क्षेत्र की समस्या नहीं बने। इसके लिए वह दिन रात लगी रहती है। इस तरह के कार्यो में इनके पति व परिवार का भरपुर सहयोग मिलता है।
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