फलका/ चाँद बहार
कटिहार : रहमतों की बारिश और गुनाहों से छुटकारे की रात शब-ए-बरात मंगलवार की शाम (मग़रिब नमाज ) से सुबह सादिक तक इबादत पूर्वक मनाया गया। मुस्लिम समुदाय के लोग पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत में लीन दीखे। रात भर छोटे बड़े सभी पूरी रात अल्लाह पाक की इबादत कर गुनाहों की माफी मांगी। इस दौरान तरह-तरह के पकवान भी बने। अपने पूर्वजों की कब्र पर जाकर दुआ-ए-मगफिरत भी की। शाम से ही मस्जिद सहित जगह -जगह दुआ ए-जलसा (मिलाद) भी आयोजित की गई। शब-ए-बारात को लेकर बच्चे, बूढ़े, जवान सभी उत्साहित नज़र आये।
शब-ए-बारात त्योहार को लेकर एक पखवाड़े से ही तैयारियों में मुस्लिम परिवार जुटे हुवे थे। वहीं मस्जिद, कब्रिस्तान, पर भी विशेष व्यवस्था के साथ रौशनी और साफ-सफाई की व्यवस्था की गई थी। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शाबान माह की 14 वीं तारीख को शब-ए-बारात का पर्व मनाया जाता है। यह रमजान से करीब 15 दिन पहले मनाया जाता है। जमात-ए-उलेमा हिन्द के जिला अध्यक्ष मौलाना इजराईल कासमी साहब ने कहा कि शब-ए-बारात का मतलब छुटकारे की रात से है। इस्लाम मजहब में इस रात की बहुत अहमियत है। शब यानि रात, यह रात इबादत की रात है जब अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है और दिन में रोजा रखा जाता है। यह रात हजार रातों से अफज़ल बताया गया है।
इस दिन उन सभी लोगों के लिए दुआ की जाती है जो दुनिया से जा चुके हैं। और उनके नाम का खाना गरीबों को खिलाया जाता है। आमतौर पर चने की दाल का हलवा, सूजी का हलवा या कुछ मीठा भी बांटा जाता है। कहते है कि जंगे उहुद में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दांत टूट गया था तो आप ने हलवा खाया था। इसलिये शब ए बारात के दिन हलवा खाना सुन्नत है। त्योहार में विशेष तौर पर हलवा बनाते हैं ,खुद खाते हैं और दोस्त अहबाबों और मिस्कीनों के बीच बांटे जातें हैं। बहरहाल इबादत का पर्व शब ए बारात शांतिपूर्ण वातावरण में संपन्न हो गया।