पूर्णियाँ/सीटीहलचल न्यूज़
प्रेमचंद का साहित्य जन जीवन का साहित्य है। उसमें भारत का ग्रामीण जीवन साॅंसे लेता है। जब तक साहित्य है,तब तक प्रेमचंद हैं। कोर्स में लगी प्रेमचंद की रचनाएं उनकी प्रासंगिकता को दर्शाती हैं। प्रेमचंद जयंती पर मिल्लिया काॅन्वेंट इंग्लिश स्कूल में अपने वक्तव्य में हिंदी के विभागाध्यक्ष श्री उमेश प्रसाद सिन्हा ने प्रेमचंद साहित्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा। मिल्लिया काॅन्वेंट इंग्लिश स्कूल, रामबाग, पूर्णिया में प्रेमचंद जयंती समारोह बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया गया। विद्यालय के प्राचार्य श्री वाई के झा ने कहा कि प्रेमचंद कालजयी रचनाकार हैं। उनके साहित्य में देश की आत्मा धड़कती है। भारत माता ग्रामवासिनी देखना है तो उनका साहित्य देखना होगा।
कार्यक्रम दो सत्रों में विभाजित था। पहले चरण की शुरुआत करते हुए श्रीमती किस्मत आरा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रेमचंद ने न केवल ग्रामीण जीवन को अपनी रचनाओं में उकेरा बल्कि बाल जगत को भी उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है। ईदगाह एक बेहतरीन कहानी है जो बाल मनोविज्ञान को दर्शाती है। दो बैलों की कथा, बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर, इत्यादि कहानियों को भुला नहीं जा सकता। इस सत्र में शिफत सोहैल ने कविता प्रस्तुत की।बूढ़ी काकी का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत कर मीत सिंह, पुष्प रंजन, अदिति आनंद,पलक कुमारी,सान्तनु, दामिनी कुमारी, शाश्वती श्रेष्ठ और पार्थ ने शमाॅं बाॅंध दिया। सनन शब्बीर,शिफा आलिया,फलक फखत्मा,प्रथम,और कायनात ने कुछ अनमोल वचन प्रस्तुत किए।दूसरे सत्र में तहसीन तौहीद ने प्रेमचंद पर अपने विचार व्यक्त किए। आयशा अहद ने काव्य पाठ किया। शेमाक शब्बीर और अलीशा अफरोज ने कार्यक्रम का संचालन किया। प्रीति झा,लाराइब फातिमा,मीनू कुमारी, अपर्णा किरण, सुष्मिता वर्मा की देखरेख में कार्यक्रम, , सफलता पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मिल्लिया एडूकेशनल ट्रस्ट के निदेशक डॉ असद इमाम ने कहा कि जिस प्रेमचंद साहित्य को बच्चे अपनी किताबों में पढ़ते हैं उसे मंच पर उतार कर बच्चों ने इस कार्यक्रम में जान डाल दी। मानव जीवन की जीवंत सृष्टि प्रेमचंद की रचनाओं की विशेषता है। आज का साहित्य प्रेमचंद साहित्य से आगे नहीं जा पाया है। ट्रस्ट के सहायक निदेशक आदिल इमाम ने इस कार्यक्रम में शामिल बच्चों के प्रति अपनी सद्भावना व्यक्त करते हुए कहा कि विद्यालय की गतिविधियों में शामिल बच्चों में शैक्षणिक योग्यता होने के साथ ही शिक्षणेत्तर क्रियाकलाप में भी अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने की क्षमता है। साहित्य ही जीवन है। प्रेमचंद की रचनाओं में यह देखने को मिलता है।