इबादत व बरकत का महीना है रमजान - मौलाना सादिक कासमी

 


बैसा (पुर्णियां) समाज सेवी सह मौलाना सादिक कासमी  ने रमजान की फजीलत को बयान करते हुए कहा कि माह-ए-रमजान में नेकियों का अज्र बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है। कोशिश कर ज्यादा से ज्यादा नेकियां इस महीने में जमा कर लेनी चाहिए। रमजान के महीने में एक दिन का रोजा रखना एक हजार दिन के रोजों से अफजल माना जाता है। रमजानुल मुबारक की रात और दिन, हर लम्हा और पूरा महीना खुसूसियत का है।


मगर इसमें खास यह भी है कि इसी पाक महीने में कुरान शरीफ नाजिल हुआ। माह-ए-रमजान में रोजा रखने का हुक्म दिया ताकि हर मोमिन को गरीबी और तंगदस्ती में मुब्तला और भूख-प्यास से बिलकते इंसानों के दर्द व गम का एहसास हो जाए। दिल व दिमाग में जरूरतमंदों की किफालत का जज्बा-ए-सादिक पैदा हो जाए और खुसूसी तौर पर मुसलमान रमजान की इबादत की बदौलत अपने आप को पहले से ज्यादा अल्लाह तआला के करीब महसूस करता है। गर्ज की महीने भर की इस मश्क का मकसदे खास भी यही है कि मुसलमान सालभर के बाकी ग्यारह महीने भी अल्लाह तआला से डरते हुए जिंदगी गुजारे, जिक्र व फिक्र, इबादत व रियाजत, कुरआन की तिलावत व यादे इलाही में खुद को लगा दे। रमजान में हर दिन व हर वक्त इबादत होती है।

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