फलका/चाँद बहार
कटिहार:ईद का दिन मुसलमानों के लिए बड़ी खुशी का दिन होता है। ईद की खुशियों में हमें गरीब रिश्तेदारों व पड़ोसियों को भी शामिल करना चाहिए। इसका सबसे बड़ा जरिया सदका-ए-फितर के रूप में उनकी माली मदद करना है। उक्त बातें फलका बस्ती के हाफिज आशिक इलाही ने कही। उन्होंने कहा कि सदका-ए-फितर देना हर हैसियत वाले मुसलमान पर वाजिब है। सबसे बेहतर है कि रमजान के मुकद्दस महीने में ही सदका-ए-फितर अदा कर दिया जाए, जिससे गरीब अपनी जरूरतें पूरी कर सकें। यदि रमजान के महीने में सदका-ए-फितर अदा न किया जा सके तो ईद की नमाज के लिए जाने से पहले इसे अदा कर देना चाहिए। उन्होंने इल्मुल फिकाह किताब का हवाला देते हुए
बताया कि सदका ए फितर हर उस मुसलमान मर्द और औरत पर वाजिब है, जो ईद-उल- फितर के दिन साढ़े बावन तौला चांदी या साढ़े सात तौला सोना या फिर उसके बराबर के जेवर, नकद या बुनियादी जरूरतें जैसे रिहाइशी मकान, इस्तेमाल के कपड़े और बर्तन से ज्यादा सामान का मालिक होने की हैसियत रखता हो। अगर कीमती कपड़े, बर्तन, फर्नीचर की कीमत साढ़े बावन तौला चांदी (छह सौ बारह ग्राम) के बराबर हो जाती हो, तो भी उस पर सदका ए फितर वाजिब है। सदका ए फितर में गेहूं निस्फ साअ (मौजूदा वजन के हिसाब से 1 किलो 633 ग्राम) दी जा सकती है
या फिर उक्त वजन के हिसाब से गेहूं की रकम बाजार भाव के हिसाब से अदा कर दी जाए। हाफिज आशिक इलाही ने कहा कि सदका-ए-फितर का दो मकसद है।एक रोजे में कमी का बदला। रोजेदार चाहे जितना भी एहतमाम कर ले फिर भी रोजेदार से कुछ ना कुछ कोताही (गलती)हो जाती है। कोताही की तलाफी(बचना) के लिए शरीयत में सदका-ए-फितर वाजिब(जरूरी)किया गया है।सदका-ए-फितर का दूसरा मकसद गरीब, बेसहारों का इंतजाम है ताकी गरीब बेसहारा लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सके।