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फलका में महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की जयंति मनाई गई,

सुधांशु शेखर/सिटी हलचल न्यूज़

फलका में वीर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की 116 वीं जयंति पर द्वीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित कर जयंति कार्यक्रम का उदघाटन प्रमुख प्रतिनिधि कंचन मंडल  ने किया, काकोरी कांड में लिया पहली बार भाग,चंद्रशेखर ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी कांड (1925) में पहली बार सक्रिय रूप से भाग लिया। इसके बाद चंद्रशेखर ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया। इन सफल घटनाओं के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूट कर संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया। चंद्रशेखर का मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है,चंद्रशेखर को इसलिए बुलाया जाता है ‘आजाद’चंद्रशेखर को ‘आजाद’ नाम एक खास वजह से मिला, चंद्रशेखर जब 15 साल के थे तब उन्‍हें किसी केस में एक जज के सामने पेश किया गया, जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ने कहा, ‘मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है’,जज ये सुनने के बाद भड़क गए और चंद्रशेखर को 15 कोड़ों की सजा सुनाई, यही से उनका नाम आजाद पड़ गया। चंद्रशेखर पूरी जिंदगी अपने आप को आजाद रखना चाहते थे,अकेले लड़ते हुए शहादत मिली


अंग्रेजों से लड़ाई करने के लिए चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक अन्य साथियों के साथ बैठकर आगामी योजना बना रहे थे , इस बात की जानकारी अंग्रेजों को पहले से ही मिल गई थी,  जिसके कारण अचानक अंग्रेज पुलिस ने उन पर हमला कर दिया , आजाद ने अपने साथियों को वहां से भगा दिया, और अकेले अंग्रेजों से लोहा  लिया, इस लड़ाई में पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे,  वे सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लड़ते रहे , उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी, इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी ,आजाद ने जिस पिस्‍तौल से अपने आप को गोली मारी थी, उसे अंग्रेज अपने साथ इंग्‍लैंड ले गए थे, जो वहां के म्‍यूजियम में रखा गया था, हालांकि बाद में भारत सरकार के प्रयासों के बाद उसे भारत वापस लाया गया, अभी वह इलाहाबाद के म्‍यूजियम में रखा गया है,  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857, जिसने बदल दी भारत में अंग्रेजों की कई नीतियां,चंद्रशेखर आजाद के जीवन की रोमांचक बातें


 आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था,  आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी उस समय आए अकाल के कारण उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करा शुरू कर दिया, और भाबरा गांव में बस गए थे,आजाद का बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गांव में बीता था,  यहां पर आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए थे,  जिसके कारण उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी,जलियांवाला बाग कांड के समय चन्द्रशेखर बनारस में पढ़ाई कर रहे थे, जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन शुरू किया तो वे अपनी पढ़ाई छोड़कर सड़क पर उतर आए, जब हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ ने धन की व्यवस्था करने के लिए अमीर घरों में डकैतियां डालने का निश्चय किया तो आजाद से एक डकैती के समय एक महिला ने उनका पिस्तौल छीन लिया, आजाद ने अपने उसूलों के कारण उसे कुछ नहीं कहा,क्रांति में धन की कमी को दूर करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया था, इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था


आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर 17 दिसंबर, 1928 की शाम को लाहौर में पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को मार दिया, जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया ,इस हत्याकांड के बाद लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है,आजाद ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फांसी रुकवाने को आज़ाद ने इन तीनों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया था,आजाद ने ताउम्र अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होने का अपना वादा पूरा किया। वे 27 फरवरी 1931 के दिन अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज कर लिया। वीर क्रांतिकारी जयंति समारोह में  प्रमुख प्रतिनिधि कंचन मंडल ,मुखिया राजू नायक उर्फ अजहरुद्दीन, राजेश रंजन, विनोद मिर्धा,सरपंच चंदन मंडल एवं फलका प्रखंड के परिवार ने वीर क्रांतिकारी के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित किया,अगला लेख प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857, जिसने बदल दी भारत में अंग्रेजों की कई नीतियां

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