पूर्णिया/ विष्णु कांत चौधरी
धमदाहा: मैथिली साहित्य के लिविंग लीजेंड, मैथिली गीत के मूर्धन्य गीतकार, धमदाहा मध्य निवासी रविंद्रनाथ ठाकुर अब इस दुनिया मे नही रहे प्राप्त जानकारी के अनुसार बुधवार को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली वे लम्बे समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे नोएडा में उनका देहावसान हुआ वे मैथिली भाषा के लिए एवम मैथिली के सतत विकास को लेकर काफी संघषर्रत रहे जिनका परिणाम यह हुआ कि उन्हें मैथिली जगत के कई सारे सम्मान से सम्मानित किया गया हाल ही में उन्हें समग्र मैथिल समाज एवम मैथिली भाषा के लिए मजत्वपूर्ण योगदान को लेकर लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया
मैथीली भाषा मे इन्होंने कई कालजयी कृति से सम्पूर्ण मिथिलावासी को अवगत कराया जिनमे चिट्ठीकेँ तार बूझू, भरि नगरीमे शोर, के थिक मैथिल-की थिक मिथिला, अर्र बकरी, माताजी विराजे मिथिले देसमे, चलू चलू बहिना, सुन सुन सुन पनिभरनी गे, पिरिये पिराननाथ, चल मिथिलामे चल, हम मिथिलेक जलसँ, चारि पाँति सुनू राम केर नामसँ, यार कुसियार यार, हमर सासुजीक जेठका दुलरूआ, तांगा चलल अलबेला, रूकियौ कने त' बारि दिअ, बिढ़नी बिन्हलकौ थुम्हा फुलेलकौ आदि जो कि इनकी कालजयी कृति मानी जाती है
इन्होंने न सिर्फ गीतों की रचना की बल्कि महेंद्र झा के साथ कई मंच पर गायन भी किए ममैथिली गीत का पहला ओडियो कैसेट रविंद्रनाथ ठाकुर और महेंद्र झा के आवाज में दुभि धान नाम से रिलीज हुआ ।मैथिली सिनेमा जगत के एकमात्र कालजयी रचना ममता गाबय गीत मिथिलावासी के मानसपटल पर पर आज भी जागृत है उन्होंने एकमात्र हिंदी भाषा मे बनी आयुर्वेद की अमर कहानी का लेखन तथा निर्देशन भी किया रविंद्रनाथ ठाकुर की मृत्यु की सूचना पर समूचा धमदाहा गांव स्तब्ध एवम शोकाकुल है ग्रामीणों ने बताया कि मैथिली भाषा मे इनके अभूतपूर्ण योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता इनकी मृत्यु समस्त मैथिल जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया जिसकी भरपाई कर पाना मिथिलावासियों के लिए निकट भविष्य में सम्भव नही ।