रमजान का पहला अशरा खत्म दूसरा अशरा मगफिरत का आज से शुरु

फलका से आरफीन बहार की रिपोर्ट

कटिहार: रमजान को तीन हिस्से में बांटा गया है। हर एक हिस्से में 10 दिन होता है। 10 दिन को अशरा कहते हैं। पहला अशरा रहमत का है, दूसरा मगफिरत का व तीसरा जहन्नम से निजात का है। रमजान का पहला  अशरा खत्म हो गया है। और दूसरा अशरा शुरू हो गया है। रमजान माह में रोजे रखने की तरह जकात भी फर्ज है। जकात का मतलब है दान देना। अपनी आय के एक हिस्से को गरीबों में बांटने को जकात कहा जाता है। नमाज और रोजे की तरह जकात को भी मुसलमानों पर फर्ज किया है। उक्त बाते मुफ्ती रिजवान ने कही


उन्होंने बताया कि साढ़े बावन तोला चांदी या फिर साढ़े सात तोला सोना या इनके बराबर की रकम (पैसा ) जिस मुसलमान के पास हो उस पर जकात फर्ज हो जाती है। एक साल का समय बीत जाने के बाद जकात दी जाती है। हर साल जकात देना फर्ज होता है। जकात को पूरे साल भर में कभी भी दिया जा सकता है, लेकिन अधिकतर जकात को रमजान माह में दिया जाता है। इस माह में जकात देने से ज्यादा सवाब (पुण्य) मिलता है। जकात का सबसे पहला फर्ज अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों पर है। अपने रिश्तेदारों में कोई गरीब है तो उसको जकात दिया जा सकता है। पड़ोस में रहने वाले गरीब, यतीम, विधवा महिलाओं को जकात दी जा सकती है। इसके अलावा मदरसों जहां पर बाहर के और यतीम बच्चे पढ़ते हो, वहां पर भी जकात को दिया जाना चाहिए

उन्होंने कहा कि गरीब और बेसहारा लोगों को जकात देनी चाहिए। ऐसे लोगों को जकात देना बहुत बड़ा सवाब (पुण्य) का काम है। लोग जरूरत से ज्यादा खर्च न करें और गरीब बेसहारा लोगों की मदद करते रहें। जकात के लिए शरीयत में नियम बनाए हैं। अपनी कुल आय का ढाई प्रतिशत हिस्सा जकात में दिया जाता है। जो कर्जदार होता है उस पर जकात फर्ज नहीं है। हालांकि कर्ज न होने के बावजूद जकात को न देने वाले मुसलमान को फर्ज को छोड़ने की बराबर गुनाह मिलता है। इसलिए जकात को देना बेहद जरूरी है। रमजान माह में इसी तरह से सदका ए फित्र भी देना वाजिब है। सदका ए फित्र हर मालदार पर वाजिब है। जिस पर जकात फर्ज है उस को सदका ए फित्र अदा करना भी जरुरी  है। सदका ए फित्र अदा करने की वजह यह है ताकि गरीब, यतीम, नादार (कमजोर) लोग भी ईद की खुशियों में शरीक होकर खुशियां मना सकें।

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