केनगर/कौनेन रजा
आस्था का महापर्व ठाढ़ी व्रत में लाखों श्रद्धालु पहुंचे। व्रती सिर पर धूपछी, हाथ में मंजूषा और खोईछा में फल-फूल लेकर माता कामाख्या मंदिर, सती श्यामा सुंदरी मंदिर, संकटमोचन हनुमान मंदिर, माणिक फौजदार और शिवालय की परिक्रमा करते रहे। मंदिरों के सामने भी सैकड़ों श्रद्धालु अरदास की पंक्ति में खड़े रहे। सूर्यास्त तक श्रद्धालु मंदिरों की परिक्रमा करते रहे। सूर्योपासना का यह पर्व रविवार को मनाया गया। मिथिलांचल और अंगिका क्षेत्र में माघ माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को यह व्रत रखा जाता है। कुछ स्थानों पर इसे शुक्ल पक्ष के हर रविवार को भी मनाया जाता है
शुक्रवार को गंगा स्नान के बाद व्रतियों ने नहाय-खाय के साथ अनुष्ठान की शुरुआत की। शनिवार को खरना हुआ। रविवार को व्रती निर्जला उपवास रखकर पूजन किए। सिर पर धूपची, हाथ में झालर और खोइंछा में फल-फूल लेकर भगवान श्री हरि का स्मरण कर देवी-देवताओं और सिद्धपीठों की परिक्रमा की। माता कामाख्या स्थान भवानीपुर, केनगर प्रखंड के मजरा भवानीपुर पंचायत में हजारों श्रद्धालु पहुंचे। पूर्णिया प्रमंडल सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों से भक्तों का आगमन हुआ। मंदिर कमेटी एवं कामाख्या थाना ओपी प्रभारी ऋषि यादवके अनुसार, सुरक्षा के लिए 23 पुलिस जवानों के साथ मजिस्ट्रेट की तैनाती की गई
पूर्णिया का कामाख्या मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। मान्यता है कि यहां देवी कृपा से कुष्ठ रोगियों का कष्ट दूर होता है। कहा जाता है कि असम के कामरूप कामाख्या मंदिर से मां यहां भक्तों पर कृपा बरसाने आई थीं। यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। मुगल काल में इसका निर्माण हुआ था। मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि सुंदरी और श्यामा नाम की दो लड़कियों की रक्षा के लिए माता यहां आई थीं। मंदिर में इन दोनों का भी एक मंदिर बना हुआ है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। खासकर कुष्ठ रोगी यहां जरूर पहुंचते हैं। मान्यता है कि माता की कृपा से उनका कष्ट दूर हो जाता है। एक कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण अपनी दो बेटियों के कारण कर्ज में डूबा था। उसने मां की आराधना की। माता प्रसन्न हुईं और उसे एक अवशेष देकर स्थापित करने को कहा। यह मंदिर उसी आस्था का प्रतीक है।