सिटी हलचल न्यूज़
भारत में नमक के आयोडीनीकरण से जुड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल 1950 के साथ दशक में शुरू हुई थी, जो आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों (आईडीडी) से निपटने के लिए आयोडीन को शामिल करने से संबंधित थी। हालांकि, 1960 के दशक में कांगड़ा घाटी परियोजना (हिमाचल प्रदेश) की सफलता ने सर्वत्र व्याप्त नमक आयोडीनीकरण (यूनिवर्सल साल्ट आयोडायज़ेशन-यूएसआई) और 1992 में इसके आधिकारिक लॉन्च की बुनियाद रखी
इस परियोजना ने साबित किया कि गॉयटर आयोडीन की कमी के कारण होता है। इस परियोजना से यह भी सामने आया कि पोटेशियम आयोडेट के इस्तेमाल से तैयार आयोडीन युक्त नमक सबसे प्रभावी और किफायती समाधान है। इसके बाद, यूएसआई पहल के तहत गैर-आयोडीन युक्त नमक की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया और यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया कि देश भर में आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध हो
यह पहल दशकों से चल रही है, जिसके तहत सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और शोध संस्थानों के बीच नमक के आयोडीनीकरण के ज़रिये देश भर में आईडीडी को कम करने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं। राष्ट्र निर्माण की दिशा में ऐसी ही एक महत्वपूर्ण साझेदारी टाटा साल्ट की रही है जो अग्रणी आयोडीन युक्त नमक ब्रांड के रूप में 1983 में अपनी स्थापना के बाद से आयोडीन की कमी से जुड़े विकारों (आईडीडी) के खिलाफ देश के संघर्ष से गहराई से जुड़ी हुई है।