पूर्णिया सिटी हलचल न्यूज़
शराब बंदी से पहले और शराब बंदी के बाद सूबे में इतना नशा मुक्ति केन्द्र नहीं था जितना वर्तमान समय में एक जिले में देखने को मिलता है इसका मूल कारण है प्रशासन द्वारा या फिर सूबे की सरकार द्वारा अपराध नियत्रण में एक विशेष फॉर्मूला नहीं अपनाया जाता है । दर असल आज शराबबंदी के बाद युवा पीढ़ी स्मैक की लत में बर्बाद हो रहे हैं । हालांकि नशा से छुटकारा के लिए भले इनके अभिभावक अपने बच्चे को नशा मुक्ति केन्द्र भेज दें परंतु इसका रोकथाम तभी संभव होगा जब नशा मुक्ति केन्द्र से सर्टिफिकेट लेकर वापस आने वाले से पुलिस गहन पूछताछ करेगी तब जाकर पता चल पाएगा की इन्हें स्मैक या अन्य नशा का लत किसके द्वारा लगाई गई थी । इसप्रकार नशा के सौदागरों पर बैन लग पाएगी । क्योंकि ये नशा के सौदागर प्रत्येक वर्ष करीब 20 लाख तक की जमीन खरीद रहा है जिसकी लीगल इनकम साल भर में 1 लाख से 1.5 लाख फिर भी वह प्रत्येक वर्ष जमीन पर जमीन खरीद रहा है तो यह जांच का विषय है ।
पुलिस के द्वारा जब भी इन नशा के सौदागर को पकड़ा जाता है तो जमीन से जुड़े जितने भी नेता, समाजसेवी, जनप्रतिनिधि हैं इनको छुराने की दलाली करने लगते हैं जिस कारण नशा के सौदागर खुलेआम अपना व्यापार करते हैं । और नशा का कारोबार गांव से शहर और राजधानी की दूरी बहुत कम समय में पार कर दी । पत्रकार रौशन राही अपनी कलम के माध्यम से जिला प्रशासन से मांग करती है नशा मुक्ति केन्द्र से निकलने वाले युवकों से नशा के लत के पीछे का कारण जानना होगा । साथ ही नशा के सौदागर के दलाली करने वालो की पूछ में आग लगानी होगी ।