हिंदी दिवस" समारोह का आयोजन किया गया

 


सुपौल/सिटीहलचल न्यूज़

समाहरणालय स्थित लहटन चौधरी सभागार भवन में उप विकास आयुक्त मुकेश कुमार की अध्यक्षता में 14 सितम्बर 2023 "हिंदी दिवस" समारोह का आयोजन किया गया। उक्त समारोह में श्री कलीम अंसारी, अपर समाहर्ता सुपौल, जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुपौल, श्री पवन कुमार यादव, विशेष कार्य पदाधिकारी सुपौल, श्री ऋषव, निदेशक, डी0आर0डी0ए0 सुपौल, जिला के वरीय उप समाहर्ता सुपौल एवं समाहरणालय के सभी कर्मीगण भाग लिए।


अपर मुख्य सचिव, मंत्री मंडल सचिवालय विभाग, बिहार, पटना के पत्रांक 476/रा0 दिनांक 10.08.2023 बिहार, पटना से प्राप्त निदेश के आलोक में हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन 14 सितम्बर 2023 को मनाया जा रहा है। 14 सितम्बर 1949 को हमारे देश की संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा को केन्द्र सरकार के काम-काज के निष्पादन के माध्यम से राजभाषा के रूप में अंगीकृत किये जाने के फलस्वरूप, उस ऐतिहासिक दिन की याद में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।बिहार सरकार के अधीनस्थ सभी कार्यालयों में कार्यो का निष्पादन हिन्दी (देवनागरी) भाषा में ही की जाती है। भारत भाषिक विविधता का देश रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की भाषिक विविधता को एकता के सूत्र में पिरोने का नाम 'हिंदी' है। हिंदी भाषा अपनी प्रवृत्ति से ही इतनी जनतांत्रिक रही है कि इसने भारतीय भाषाओं और बोलियों के साथ-साथ कई वैश्विक भाषाओं को यथोचित सम्मान देते हुए उनकी शब्दावलियों, पदों, वाक्य विन्यासों और वैयाकरणिक नियमों को आत्मसात किया है।


हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता आन्दोलन के मुश्किल दिनों में देश को एकता के सूत्र में बाँधने का अभूतपूर्व कार्य किया। अनेक भाषाओं और बोलियों में बँटे देश में ऐक्य भावना से पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक स्वतंत्रता की लड़ाई को आगे बढ़ाने में संवाद भाषा हिंदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इसीलिए, लोकमान्य तिलक हों, महात्मा गांधी हों, लाला लाजपत राय हों, नेताजी सुभाषचंद्र बोस हों, राजगोपालाचारी हों; हिंदी के शुरुआती पैरवीकारों में बहुसंख्यक उन प्रदेशों के लोग थे, जिनकी मातृभाषाएँ हिंदी नहीं थीं।

किसी भी देश की मौलिक सोच और सृजनात्मक अभिव्यक्ति सही मायनों में सिर्फ उस देश की अपनी भाषा में ही की जा सकती है। प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने लिखा है कि, "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल। " यानि कि, अपनी भाषा की उन्नति ही सभी प्रकार की उन्नति का मूल है। राष्ट्र की पहचान इस बात से भी होती है कि उसने अपनी भाषा को किस सीमा तक मजबूत, व्यापक एवं समृद्ध बनाया है। यही कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 343 द्वारा संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी और लिपि के रूप में देवनागरी को अपनाया ।

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