वेलेंटाइन डे स्पेशल: पूर्णियाँ कलक्टर की प्रेम कथा

पूर्णियां/बालमुकुन्द यादव 

14 फरवरी के दिन को अक्सर लोग वेलेंटाइन डे के रूप में जानते है। इस दिन पूर्णियाँ की जनता और जिला प्रशासन भी काफी तैयारी करती है, वजह है जिले का स्थापना दिवस। 14 फरवरी को पूर्णियाँ जिला 252 साल का हो जाएगा।14 फरवरी 1770 को पूर्णिया जिला की स्थापन हुई थी। पूर्णियाँ बिहार के पुराने जिले में सुमार था, जो दार्जीलिंग तक फैला हुआ था। कटिहार, किशनगंज, अररिया सब पूर्णियाँ जिला ही था। जब पूर्णियाँ जिला की स्थापना हुई थी उस वक़्त जिले के पहले सुपरवाइजर-कलेक्टर अंग्रेज ऑफिसर गेरार्ड डुकरैल को बनाया गया था। जिसे अभी जिलाधिकारी का पद है उसी तरह उस वक़्त सुपरवाइजर-कलेक्टर होते थे जो राजस्व वसूली करते थे। जिस बात डुकरैल को कलेक्टर बनाया गया था उस वक्त पूर्णियाँ जंगलों से घिरा हुआ था। शायद पूर्ण-अरण्य यानी पूरा जंगल से ही पूर्ण-अरण्य आगे पूर्णियाँ हो गया होगा और इस जिला का नाम पूर्णियाँ बना होगा। पूर्णियाँ को लोग ।कालापानी के नाम से भी जानते थे। यहाँ का खराब पानी, जंगली इलाका और मच्छर किसी काला पानी से कम नहीं था। अभी हाल तक मैथली में एक कहावत थी


"जहर खाउ न माहुर खाउ.. मरे के होय त पूर्णियाँ जाऊ"

मगर कलक्टर डुकरैलइन सब के बाबजूद इस एरिया को चैलेंज के रूप में लिया। मगर उसी वक़्त 1773-74 में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था, जिसमे बंगाल की एक तिहाई आवादी मर गई था। चुकी पूर्णियाँ भी बंगाल का ही एक पार्ट था तो यहाँ भी आधी आवादी अकाल से मर गई। यानी एक तरह से फिर पूर्णियाँ को सींचने संवारने का काम कलक्टर डुकरैल को मिला जिसे उन्होंने बखूबी किया।कलक्टर डुकरैल एक अंग्रेज ऑफिसर होते हुए भी एक भारतीय महिला से शादी की थी। उसके पीछे भी काफी रोचक कहानी है जो किसी फिल्म के लव स्टोरी से कम नही है। कहते है कलक्टर डुकरैल राजस्व वसूली हेतु जमींदारों के घर जाया करते थे। उस अकाल के कारण कलक्टर ने किसानों का लगान भी माफ कर दिया था।इसी दरम्यान एक जमींदार के यहाँ रात्रि विश्राम के दौरान जमींदार की बहू को उन्होने एक नजर देख लिया था, उसकी खूबसूरती पर वे फिदा हो गए थे। चुकी महिला शादी शुदा थी इसलिए बात आई और गई रह गई। कुछ साल बाद जब कलक्टर डुकरैल घोड़े पर सवार होकर रात्रि में गुजर रहे थे तो देखा सौरा नदी के तट पर आग का चिता जल रहा था, लोग ढोल नगारे बजा रहे थे


वही एक महिला जोर जोर से रो रही थी और लोगो से अपने प्राणों की भीख माँग रही थी। यह देख कलक्टर डुकरैल नदी पार कर उस स्थान पर पहुँचे तो कलक्टर की आँख फटी की फटी रह गई। वह महिला कोई और नहीं बल्कि वही जमींदार की बहू थी जिसे कभी उन्होंने एक नजर देखा था। तब बाद में पता चला कि जमींदार का बेटे की मृत्यु हो गई है, इसलिए उसकी पत्नी को सती होने पड़ेगा। आपको बता दे कि उस हमारे देश मे सती प्रथा लागू था, जिसमे पति की मौत के बाद पत्नी को भी सती होना पड़ता था। महिला को देख एकबार फिर कलक्टर डुकरैल का प्यार जाग गया और महिला को छोड़ देने का हुक्म दिया। मगर प्रथा को लेकर लोग मनाने को तैयार नहीं हुए और महिला को जबरदस्ती सती बनाने को आमादा थे। तब जाकर कलक्टर ने रिवॉल्वर निकलकर फायर करना शुरू किया जिसके आगे लोग टिक नहीं सके। फिर महिला की जान बचाकर अपने घर ले आये। मगर इसके बाद उन्हें और लोगो का गुस्सा झेलना पड़ा और लोग तरह तरह की बातें करने लगे साथ ही ताने भी देने लगे

जिसके बाद कलक्टर डुकरैल ने ऐसा काम किया जो इतिहास बन गया। कुछ ही दिन के बाद कलक्टर डूकरैल ने उस महिला से शादी कर ली। जो भारत देश मे पहला विधवा विवाह का मामला था।आपको बता दे कि 1829 में राजा राममोहन रॉय ने सती प्रथा का विरोध किया था। मगर कलक्टर डुकरैल की यह कहानी 1770 की है, यानी राजराम मोहन रॉय के 100 साल पहले ही कलक्टर डूकरैल सती प्रथा का विरोध कर चुके थे, साथ ही विधवा विवाह भी किया था। मगर डुकरैल की यह कहानी इतिहास के पन्नो में कही खो गया। कहते है जब कलक्टर डूकरैल कुछ दिनों के बाद अपनी पत्नी को लेकर लंदन चले गए, वही उनके बच्चें हुए वही वे बस गए। जिस जमींदार के बहु से कलक्टर डुकरैल ने शादी की थी उस जगह का नाम भी डुकरैल पड़ गया, जो अब डकरैल के नाम से जाना जाता है और अब यह अररिया जिले में आता है।

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