21वी सदी में नाव की सवारी.. शर्म करो सरकार



अमौर/सनोज

पूर्णियाँ: कहने और सुनने में कुछ अटपटा सा लग रहा हो पर यह बात सौ फीसदी सच है कि बिहार के सबसे पिछड़े विधानसभा क्षेत्रों में अगर किसी विधानसभा क्षेत्र का नाम सबसे ऊपर आएगा तो शायद वह अमौर विधानसभा ही होगा क्योंकि 21 वी सदी के एक चौथाई वर्ष होने को है  जहा अन्य क्षेत्रों में विकास की रफ्तार दिनोदिन तेज होती दिख रही है वही आज भी अमौर विधानसभा क्षेत्र की आज भी एक लाख से अधिक की आबादी नाव के सहारे ही आवागमन करने को मजबूर है।आजादी के बाद से अब तक पूर्णिया जिले व किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले इस विधानसभा क्षेत्र के पूर्वी  व पश्चिमी क्षेत्र के दर्जनों गावो के एक लाख से भी अधिक की आबादी का प्रखंड मुख्यालय से सीधा सड़क संपर्क नही रहने के कारण आने-जाने के लिए आवागमन का एकमात्र सहारा नाव ही है।अमौर की भौगोलिक पृष्ठभूमि के तहत  चारो दिशाओं से नदियो के जाल से  घिरे इस विधानसभा क्षेत्र के पूर्वी क्षेत्र से  होकर बहने वाली  महानंदा व कनकई नदी के उस पार अमौर प्रखण्ड क्षेत्र के दो पंचायत खाड़ी महीनगाव व हफनिया पंचायत है  वही बैसा प्रखंड़ के सिरसी व कंफलिया पंचायत है


वही इस विधानसभा क्षेत्र के पश्चिमी भाग से होकर बहने वाली परमान व बकरा नदी के उस पार बसे अमौर प्रखंड क्षेत्र के तियरपारा,आधांग,झौवारी, पोठिया गंगेली, आदि पंचायत के दर्जनों गावो के लोग रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए कभी प्रखण्ड,अनुमंडल, जिला  मुख्यालय तो कभी रौटा व अमौर बाज़र आते जाते रहते है। हालकि इन पंचायतों के ग्रामीणो के लिए रौटा बाज़ार या फिर अमौर प्रखंड़ मुख्यालय तक आने के लिए सड़क मार्ग तो  है पर लंबी दूरी रहने के कारण अधिकांश लोग इस सड़क मार्ग को उपयोग नही कर नाव के सहारे ही आवागमन करना ज्यादा पसंद करते हैं। ग्रामीण शंभु राय,पिंटू दास, मो दिलबर आलम,मो अनीसुर रहमान, दिलीप दास,मो तोहिद,मो जुबेर,इदरीश,सुनील,विक्की आदि ने  दर्द बयान करते हुए बताया कि सड़क मार्ग से होकर जहाँ रौटा बाज़ार आने के लिए तीस किलोमीटर व अमौर प्रखंड़ मुख्यालय तक आने के लिए चालीस किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तय करना पड़ता है। जबकि बगल बह रही नदी में नाव के परिचालन के सहारे यह दूरी घटकर पाँच से सात किलोमीटर की हो जाती है। सही मायनों में इन गावो से अमौर की दूरी पाँच से सात किलोमीटर ही है।नाव के सहारे आवागमन करने में साल के छह या फिर सात महीनों में तो कोई परेशानी नही होती है पर जैसे ही बरसात का मौसम शुरू हो जाता है यह मार्ग पूरी तरह से बंद हो जाने के कारण फिर मिनटों का सफर को घंटो में तय करने को मजबूर होना पर जाता है

खासकर बीमार व्यक्ति को जब तुरन्त अस्पताल ले जाने की बात सामने आती है तो न चाहते हुए रोगी को लंबी दूरी का तकलीफ सहना पड़ता है। समाजसेवी नियाज़ अहमद,मो इकबाल,गणेश प्रमाणिक आदि बताते है कि आज़ादी के बाद से अब तक न जाने कितने  जनप्रतिनिधि आए और गए लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। लंबे संघर्ष के बाद साल 2012 में कनकई नदी के खाड़ी घाट पर खाड़ी पुल व परमान नदी के रसैली घाट पर रसैली पूल  का निर्माण कार्य शुरू होने से  लोगो की उम्मीद जग उठी।पर विभाग की लापरवाही कह ले या फिर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आज नौ वर्ष  पूरे हो  चुके है पर पुल निर्माण कार्य पूर्ण नही हुआ है। विभाग ने संवेदक को काली सूची में डालते हुए इस पुल के शेष बचे हुए कार्य को पूरा करने के लिए दोबारा टेंडर निकलाने की बात कही है जिसके बाद एक बार से आम लोगो मे आक्रोश है।उन्होंने आम लोगो को वर्षो से हो रही घोर परेशानियों की सुधि लेते जिला प्रशासन से इस दिशा में सकारात्मक पहल करने की मांग की है। विदित हो कि क्षेत्र के खाड़ी घाट,सिल्ला घाट,सिंघिया घाट,शीमल बाड़ी घाट,रसैली घाट,चन्नी घाट,गोस्तरा घाट,टिककर घाट ,तेलंगा घाट आदि से नाव के सहारे हज़ारों की संख्या में रोज लोगो का आवागमन होता है।

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