नमाज और रोजे की तरह ही जकात भी है फर्ज: हाफिज आशिक इलाही

फलका से आरफीन बहार की रिपोर्ट

कटिहार:इस्लाम ने अमीर लोगों की आमदनी में एक हिस्से पर गरीब, यतीम और समाज के सबसे निचले पायदान पर जिंदगी गुजर-बसर करने वालों का हक तय किया है। इसी को देखते हुए इस्लाम में दान के कई तरीके बताएं हैं। जिसमें जकात फर्ज (जरूरी) है और सदका-ए-फित्र इसी का एक हिस्सा है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका ढाई फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं


जकात का मतलब होता है पाक करना। जकात की अहमियत इस बात से भी लगाई जा सकती है कि कुरान पाक में तकरीबन 32 जगहों पर नमाज के साथ जकात देने का हुक्म है। साथ ही इस्लाम के पांच रुक्नों में से एक है और फर्ज भी है। यह बात हाफिज आशिक इलाही ने बताई। हाफिज इलाही ने हदीस के मुताबिक बताया कि जकात उन मुसलामनों पर फर्ज है जो साहिब-ए-निसाब हो। साहिब-ए-निसाब वो औरत या मर्द को कहते हैं 

जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी हो या फिर जिसकी हलाल कमाई में से सालाना बचत 75 ग्राम सोने की कीमत के बराबर हो। तो उस इंसान को अपनी आय से ढाई फीसदी हिस्सा जकात के तौर पर देना होता है। मतलब अगर पूरे एक साल तक किसी के पास एक लाख रुपये की बचत हो, तो उस शख्स को इस एक लाख का 2.5% मतलब 2500 रुपये जकात के तौर पर गरीबों में दान करना होगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post