हाजीपुर से संजय विजित्वर की रिपोर्ट
हाजीपुर : कर्मकांड के अनुसार पितरों को पानी,तर्पण और पिंडदान करने से पितरगण प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है।पितरगण आस लगाये रहते हैं कि उनकी वर्तमान पीढ़ी उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए बतलाये गये कर्मकांड के अनुसार विधिवत उन्हें पानी,तर्पण और पिंडदान करेंगे तभी उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसलिए सदियों से अपने पितरों को पानी तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा कायम है।इस क्रम में सर्वप्रथम अगस्त्य ॠषि को पानी दिया जाता है।हिन्दी तिथि के अनुसार जिस दिन किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई हो तो उस तिथि के अनुसार ही उतने दिन तक पानी-तर्पण किया जाता है और पिंडदान करने की परिपाटी चलन में है। पिंडदान करने के क्रम में श्रद्धा- पूर्वक श्राद्धकर्म कर पंडित को दान एवं भोजन कराया जाता है।ऐसा करने से समझा जाता है
कि पितरों को आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पितरों को पानी कुछ लोग पंडित को बुलाकर अपने घर पर ही देते हैं और कुछ लोग गंगा घाट पर जाकर यह कर्म करते हैं। स्थानीय ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर अपने पितरों को पानी देने के निमित्त यह दृश्य देखा गया।प्रथम दिन परंपरा के अनुसार ॠतु फल में विशेष रूप से खीरा या बाल (भुट्टा),फूल तथा खर की फुलकी से अगस्त्य मुनि को पानी-तर्पण किया गया।पानी-तर्पण करनेवाले व्यक्ति सर्वप्रथम स्नान करके शुद्ध मन- मस्तिष्क से ध्यान पूर्वक अगस्त्य मुनि को पानी-तर्पण करते देखे गए।इस क्रम में पंडित पप्पू झा ने बताया कि पानी- तर्पण का प्रथम दिन होने के कारण अगस्त्य ॠषि को पानी दिया गया है और अगले दिन से पितरों को पानी- तर्पण और मृत्यु तिथि के अनुसार पिंडदान किया जाएगा।