कुरसेला से मणिकांत रमन की रिपोर्ट
कटिहार : प्रलयंकारी बाढ़ का दंश झेल रहे लोग परेशान हो रहे हैं। घर बार डूबने के बाद रेलवे माल गोदाम पर जगह-जगह शरण लिए बाढ़ पीड़ित परिवार खानाबदोश की तरह जीने को मजबूर हैं। मनुष्य के अलावे मवेशियों को भी परेशानी हो रही है। बाढ़ प्रभावित लोग माल गोदाम पर प्लास्टिक-टटिया का अस्थाई आशियाना बना कर अपने बाल बच्चों के साथ किसी तरह जीवन यापन करने को विवश हैं। यहां शरण लिए पीड़ित परिवार दिन तो किसी तरह गुजार लेते हैं। पर रात में घुप्प अंधेरा होने के कारण इन्हें विशैले जीव जंतुओं का डर सताने लगता है। रात के सन्नाटे में कोई बिजली-बत्ती नहीं होने से यहां बाढ़ प्रभावित अंधेरे में जिंदगी जीने की जद्दोजहद कर रहे हैं
माल गोदाम के समीप से गुजरी रेल ट्रैक पर तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आने का खतरा भी पीड़ित परिवारों को चिंता में डाल देता है। खुले आसमान में कड़ी धूप और बारिश के बीच अपने बाल बच्चों को सुरक्षित रखना इनके लिए कठिन हो जाता है। रेलवे माल गोदाम पर शरण लिए बाढ़ प्रभावितों ने बताया कि सरकारी स्तर पर उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है। ना ही प्लास्टिक मिला और ना ही सूखा राशन। पीड़ितों ने कहा कि माल गोदाम पर चल रहे सामुदायिक किचन से भी उन्हें किसी किसी दिन सिर्फ एक वक्त एक डब्बो पका खिचड़ी या भात मिलता है
वह भी कम ही लोगों को नसीब होता है। जिसके कारण उनके बाल बच्चे रूखा सूखा खा कर अपना भूख मिटा रहे हैं। लोगों ने बताया कि प्रशासन की ओर से यहां रोशनी के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। अंधेरे में हमेशा सांप-बिच्छू का खतरा बना रहता है। दिन तो घर-परिवार को व्यवस्थित करने और राशन-चारा के इंतजाम में कट जाता है, पर अंधेरे में बाल बच्चों के साथ रात गुजारना मुश्किल हो जाता है।
माल गोदाम के समीप से गुजरी रेल ट्रैक पर तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आने का खतरा भी पीड़ित परिवारों को चिंता में डाल देता है। खुले आसमान में कड़ी धूप और बारिश के बीच अपने बाल बच्चों को सुरक्षित रखना इनके लिए कठिन हो जाता है। रेलवे माल गोदाम पर शरण लिए बाढ़ प्रभावितों ने बताया कि सरकारी स्तर पर उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है। ना ही प्लास्टिक मिला और ना ही सूखा राशन। पीड़ितों ने कहा कि माल गोदाम पर चल रहे सामुदायिक किचन से भी उन्हें किसी किसी दिन सिर्फ एक वक्त एक डब्बो पका खिचड़ी या भात मिलता है
वह भी कम ही लोगों को नसीब होता है। जिसके कारण उनके बाल बच्चे रूखा सूखा खा कर अपना भूख मिटा रहे हैं। लोगों ने बताया कि प्रशासन की ओर से यहां रोशनी के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। अंधेरे में हमेशा सांप-बिच्छू का खतरा बना रहता है। दिन तो घर-परिवार को व्यवस्थित करने और राशन-चारा के इंतजाम में कट जाता है, पर अंधेरे में बाल बच्चों के साथ रात गुजारना मुश्किल हो जाता है।