पूर्णियाँ/ डिम्पल सिंह
बिहार के पूर्णिया में जली थी होलिका
अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं बिहार से। होली के एक दिन पूर्व होने वाले होलिका दहन का भी सम्बन्ध बिहार से है। वास्तव में होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है। असुर राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार में हुआ था। तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा चल पड़ी। यहां पूर्णतः जंगल वाला यानी पूर्ण अरण्य वाला एक क्षे़त्र था जो कालान्तर में पूर्णिया कहलाया। अभी यह बिहार का एक जिला है। इस जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में वह स्थान है जहां भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद को होलिका अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी।
होलिका तो भस्म हो गई मगर प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया। भगवान विष्णु ने उसी समय नरसिंह के रूप में अवतरित होकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।
क्या है मंदिर का इतिहास :-
बनमनखी प्रखंड अंतर्गत सिकलीगढ़ धरहरा में भगवान ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था. हिरण नदी के तट पर अवस्थित इस स्थल पर आज भी प्रह्लाद स्तंभ मौजूद है जो लोगों की आस्था का केंद्र है. होली के मौके पर विशाल होलिका दहन समारोह का आयोजन यहां प्रतिवर्ष किया जाता है.ब्रिटेन से प्रकाशित पत्र क्विक पेजेज द फ्रेंडशिप इनसाक्लोपिडिया में भी हुई इस स्तंभ की चर्चा ह. 1911 में प्रकाशित गजेटियर में ओ मेली ने भी इसकी चर्चा करते हुए इसे मणिक खंभ कहा है जिसका उल्लेख पुरातात्विक महत्व वाले ग्रंथों में भी है.मान्यता के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परमभक्त थे. जबकि हिरण्यकश्यप भगवान को नहीं मानते थे और खुद को भगवान मानने के लिए कहते थे. इसलिए उसने कई बार अपने पुत्र को मारना चाहा लेकिन वे बच जाते. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी.इसलिए होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर आग के हवाले कर दिया गया. लेकिन होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गये. फिर उन्हें खंभा से बांधकर वध करने के लिए जैसे ही हिरण्यकश्यप तैयार हुए भगवान ने नरसिंह रूप में खंभा से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया. जिसे मणिक खंभ कहा गया जो आज भी मंदिर परिसर में मौजूद
1411 इंज लंबा है प्रह्लाद खंभ
जिला मुख्यालय से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर एनएच 107 के किनारे बनमनखी अनुमंडल के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ में नरसिंह अवतार स्थल मौजूद है. यहां पर एक निश्चित कोण पर झुका हुआ खंभा है. स्तंभ का अधिकांश भाग जमीन के अंदर घुसा हुआ है और इसकी लंबाई तकरीबन 1411 इंच है. मिली जानकारी अनुसार प्रह्लाद स्तंभ के पास की गयी खुदाई में पुरातात्विक महत्व के सिक्के प्राप्त हुए थे. इसके बाद से ही स्थानीय प्रशासन ने इसके आस-पास खुदाई पर रोक लगा रखी है. हालांकि उसके बाद से यहां भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है.
*ब्रिटेन के अखबार में भी है स्तंभ का जिक्र :-
धरहरा के नरसिंह अवतार स्थली की जानकारी भले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास न हो लेकिन इसका उल्लेख ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले क्विक पेजेज द फ्रेंडशिप इन इनसायक्लोपीडिया में भी इस बाबत खबर प्रकाशित हो चुकी है. जानकारों की मानें तो अंग्रेजों ने अपने समय में इस खंभे को हाथियों से खिंचवाने की कोशिश की थी. परंतु यह खंभा जमीन से नहीं निकल पाया और एक निश्चित कोण पर झुक गया. ऐसे में लोगों को हैरत इस बात से हो रही है कि जब अंग्रेजी अखबार में इसका जिक्र है तो भारत की केंद्रीय एजेंसी को इसकी जानकारी अबतक कैसे नहीं मिली है.