अररिया: बाल अधिकारों के संरक्षण एवं उनके समुचित देखरेख को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित बाल अपराध से जुड़े मामलों में पुलिस को अपने नजरिये में बदलाव करने की है जरूरत:- जिला बाल संरक्षण इकाई अररिया द्वारा बाल संरक्षण एवं किशोर न्याय अधिनियम 2015 से संबंधित एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन रविवार को किया गया. कार्यशाला में बालकों की देखेरेख एवं उनके संरक्षण से संबंधित विभिन्न मामलों पर गहन चर्चा की गयी. टॉउन हॉल अररिया में आयोजित कार्यशाल की अध्यक्षता जिला एवं सत्र न्यायाधिश पीयुष गोयल ने की. वहीं कार्यक्रम में जिलाधिकारी प्रशांत कुमार सीएच, जिला पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार सिंह, एडीजे अभिषेक दास, सत्येंद्र कुमार सिन्हा, जुबैनाइल जस्टिश बोर्ड के अध्यक्ष कुमोद रंजन, धीरेंद्र कुमार, एसडीपीओ पुष्कर कुमार, डीएसपी अररिया सुबोध कुमार किशोर न्याय परिषद के सदस्य दिपक कुमार वर्मा उर्फ रिंकू सहित सभी थाना के एसएचओ और सभी प्रखंड की सीडीपीओ ने भाग लिया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधिश पीयुष गोयल ने
कहा कि बाल अधिकारों के संरक्षण को लेकर न्यायिक पदाधिकारी, सीडब्ल्यूसी एवं पुलिस पदाधिकारियों की अलग -अलग जिम्मेदारी निर्धारित है।उन्होंने कहा कि बच्चों को सुरक्षित भविष्य एवं उन्हें विकास के समुचित अवसर प्रदान करना हम सबों की सामूहिक जिम्मेदारी है। डीजे ने कहा कि अक्सर देखा जाता है कि बाल अपराध से जुड़े मामलों में अक्सर बच्चों की उम्र निर्धारण में संबंधित पक्ष अपने हित को प्रमुखता देते हैं. जो गलत है. हमें इस मामले में थोड़ी उदारता दिखाने की जरूरत है. अगर हमारे प्रयास से किसी बच्चें का भविष्य को सजाया एवं संवारा जा सकता हो. तो इसे प्राथमिकता दिये जाने की जरूरत है. जिलाधिकारी प्रशांत कुमार सीएच ने कहा कि आपराधिक मामलों में हर उम्र के लोगों के साथ एक सामान नजरिया नहीं अपनाया जा सकता है. 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ किसी शातिर अपराधी की तरह व्यवहार नहीं कर सकते. वैज्ञानिक प्रमाणों से यह साबित है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चें शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होते हैं
शातिर अपराधियों की तरह उनके साथ व्यवहार किये जाने से बच्चों पर इसका विपरित प्रभाव पड़ता है. इससे बच्चों में अपराध बोध विकसित होने का खतरा होता है. जिला पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार सिंह ने कहा कि बाल अपराध से जुड़े मामलों में पुलिस को अपने नजरिया में बदलाव की जरूरत है. आपराधिक घटनाक्रम को लेकर 18 साल से कम उम्र के बच्चों को मीडिया के सामने प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है. ऐसे बच्चों को अपने सुधार का अवसर जरूर उपलब्ध कराया जाना चाहिये. इसके लिये बाल सुधार गृह का प्रावधान है. जहां बच्चों को उनके घर के तरह का माहौल उपलब्ध कराया जाता है. पुलिस को ऐसे मामलों में नरमी बरतते हुए मानवीय पक्षों को ध्यान में रखते हुए बाल अधिकारों के संरक्षण एवं उन्हें उचित न्याय दिलाने में उन्होंने पुलिस की भागीदारी को महत्वपूर्ण बताया. कार्यक्रम में मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका यूनिसेफ के शाहीद जावेद ने निभाया. प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 2015 से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण प्रावधानों से उपस्थित लोगों को अवगत कराया. कार्यक्रम का संचालन बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक राजू कुमार ने किया
अपने संबोधन में एसडीपीओ पुष्कर कुमार ने कहा कि कोई भी बच्चा स्वेच्छा से जुर्म का रास्ता अख्तियार नहीं करता. इसके पीछे उसकी कुछ मजबूरी छूपी होती है. हमें इन कारणों की पड़ताल करते हुए बच्चों को अपने में सुधार एवं बदलाव के लिये प्रेरित करने की जरूरत है. किशोर न्याय परिषद के सदस्य दीपक कुमार वर्मा उर्फ रिंकू ने अपने संबोधन में कहा कि सीमावर्ती क्षेत्र पहले से ही गरीबी, अशिक्षा व बेरोजगारी का दंश झेल रहा है. बच्चों में नशा की प्रवृति हाल के दिनों में काफी तेजी से बढ़ा है. जो उसे जुर्म की दुनिया में धकेल रहा है. हमें बाल अपराध के कारणों की समुचित पड़ताल करते हुए इसके निदान के लिये उचित कदम उठाने होंगे. जो बाल अधिकारों के संरक्षण व उनके देखरेख के लिये महत्वपूर्ण है. मौके पर जेजेबी सदस्य अणु कुमारी, सीडब्ल्यूसी की अध्यख निशा कुमारी सहित अन्य मौजूद थे. कार्यक्रम के समाप्ति पर धन्यवाद ज्ञापन किशोर न्याय परिषद के सदस्य दीपक कुमार वर्मा उर्फ रिंकू द्वारा किया गया।